भगवान राम की जन्म कुंडली: ज्योतिषीय रहस्य

विवेक शुक्ला

आजकल सारे देश में रामलीलाओं का मंचन और मां दुर्गा का पूजन हो रहा है। सारा वातावरण भक्तिमय हो चुका है। भगवान राम एक ऐसे प्रतीक हैं जो सत्य, धर्म और न्याय की मूर्ति हैं।  महात्मा गांधी ने रामायण को न केवल धार्मिक ग्रंथ के रूप में अपनाया, बल्कि जीवन के नैतिक सिद्धांतों की आधारशिला बनाया। दूसरी ओर, भगवान राम की जन्म कुंडली ज्योतिषीय दृष्टि से एक दुर्लभ संयोग प्रस्तुत करती है, जो उनके जीवन की दिव्यता और नेतृत्व क्षमता को प्रतिबिंबित करती है। महात्मा गांधी की भगवान राम के प्रति राय सत्य और अहिंसा की गहन खोज थी, जो रामायण को जीवन का दर्शन बना देती है।  दोनों का मेल हमें एक ऐसे समाज की कल्पना कराता है जहां राम राज्य न केवल स्वप्न हो, बल्कि वास्तविकता—सत्य की ज्योति से रोशन। गांधीजी की तरह, यदि हम राम की कुंडली के संदेश को अपनाएं, तो राम राज्य साकार हो सकता है।


 गांधीजी ने राम को 'सत्य' का पर्याय माना। उनके अनुसार, "मेरा बुद्धि और हृदय भगवान के सर्वोच्च गुण और नाम को सत्य के रूप में पहचान चुका है, लेकिन मैं सत्य को राम के नाम से पुकारता हूं।" गांधीजी की राम-भक्ति में कोई संकीर्णता नहीं थी। वे राम को सभी का भगवान मानते थे। एक बार उन्होंने कहा, "राम सबके भगवान हैं। एक मुसलमान को राम का नाम लेने में कोई आपत्ति क्यों होनी चाहिए? लेकिन वे रामनाम को भगवान का नाम मानने के लिए बाध्य नहीं हैं।" यह दृष्टिकोण उनकी समावेशी विचारधारा को दर्शाता है। 1921 में जब वे अयोध्या पहुंचे, तो राम मंदिर में प्रार्थना की। रामायण ने गांधीजी को सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, स्वदेशी, स्वराज और अस्पृश्यता उन्मूलन जैसे सिद्धांत दिए। राम का वनवास उनके लिए सत्याग्रह का प्रतीक था—एक ऐसा त्याग जो अन्याय के विरुद्ध खड़ा होता है।

अब बात करते हैं भगवान राम की जन्म कुंडली की, जो वाल्मीकि रामायण के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष नवमी को (राम नवमी) है। प्रख्यात लेखक और ज्योतिषी डॉ. जे.पी.शर्मा लालधागेवाले ने भगवान राम की जन्म कुंडली का गहराई से अध्ययन किया है। वे कहते हैं कि ज्योतिषीय दृष्टि से भगवान राम की कुंडली एक असाधारण है, जो राम के मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप को प्रमाणित करती है। राम का जन्म त्रेता युग में अयोध्या में हुआ, और उनकी कुंडली में लग्न कर्क राशि है। लग्नेश चंद्रमा अपनी स्वराशि कर्क में स्थित है, जो भावनात्मक स्थिरता और जनकल्याण की भावना प्रदान करता है।

 गांधी जी राजधानी के वाल्मिकी मंदिर में 214 दिनों तक रहे थे 1 अप्रैल 1946 से 10 जून 1947 तक। मुंबई में रहने वाले डॉ जे.पी. शर्मा लालधागेवाले ने इसी जगह पर जाकर भगवान राम की जन्म कुंडली का अध्ययन करना शुरू किया था। वे मानते हैं कि गांधी जी भगवान राम के बारे में एक नई सोच प्रदान करते हैं। भगवान के जीवन पर लिखे अपने कई निबंधों में डॉ लालधागेवाले कहते हैं कि राम की कुंडली की सबसे उल्लेखनीय विशेषता पांच ग्रहों का उच्च स्थान है: सूर्य, मंगल, गुरु, शुक्र और शनि। लग्न में गुरु (6ठे और 9वें भाव का स्वामी) और चंद्रमा का योग है, जो परस्पर चतुर्थ भाव में होने से राजयोग बनाता है। यह योग न्याय, धर्म और नेतृत्व की क्षमता देता है। सूर्य मेष राशि में उच्च का है। मंगल वृश्चिक में स्वराशि और उच्च का, जो युद्ध कौशल (रावण वध) को दर्शाता है, लेकिन अहिंसा के सिद्धांत से संयोजित। गुरु कर्क में उच्च का, जो बुद्धि और नैतिकता का स्रोत है। शुक्र तुला में स्वराशि और उच्च का, जो कला, प्रेम और मर्यादा को मजबूत करता है—सीता के प्रति राम की निष्ठा इसी का फल है। शनि तुला में उच्च का, जो धैर्य और न्याय का प्रतीक है।

 यह कुंडली पांच ग्रहों के उच्च होने से 'पंच महापुरुष योग' जैसी संरचना प्रस्तुत करती है, जो अवतारी पुरुष के लिए दुर्लभ है। चंद्रमा की स्वराशि स्थिति जनसेवा की भावना जगाती है, जबकि गुरु का लग्न में होना धर्म की रक्षा का संकेत है। राम की कुंडली में कोई दोष नहीं—न पापकर्तरी योग, न कालसर्प। यह एक परिपूर्ण कुंडली है, जो उनके जीवन की घटनाओं—वनवास, रावण वध, राज्याभिषेक—को ज्योतिषीय रूप से सही ठहराती है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, यह जन्म तिथि सूर्योदय के समय हुई, जो कुंडली को और मजबूत करती है।

गांधीजी की राम-भक्ति उनकी कुंडली के गुणों से प्रेरित लगती है। राम की कुंडली में चंद्रमा-गुरु योग अहिंसा और सत्याग्रह का आधार है, जो गांधीजी ने अपनाया। राम का उच्च शनि धैर्य सिखाता है, जो गांधीजी के सत्याग्रह आंदोलनों में दिखा। राम राज्य का गांधीवादी स्वप्न इसी कुंडली की ऊर्जा से जुड़ता है: उच्च गुरु न्याय का प्रतीक है, जो राम राज्य में सबके लिए समानता सुनिश्चित करता है। गांधीजी ने राम को 'सत्य का अवतार' कहा, और राम की कुंडली में उच्च सूर्य (आत्मा का कारक) सत्य की ज्योति जलाता है।

 अंत में एक बात पर गौर करना होगा कि गांधी के राम अलग हैं, राम मनोहर लोहिया के राम अलग है। बाल्मीकि और तुलसी के राम में भी फर्क है। भवभूति के राम दोनों से अलग हैं। कबीर ने राम को जाना, तुलसी ने माना, निराला ने बखाना। राम एक हैं, पर राम के बारे में दृष्टि सबकी भिन्न है। त्रेता युग के श्री राम त्याग, शुचिता,  मर्यादा, संबंधो और इन संबंधों से ऊपर मानवीय आदर्शों की वे प्रति मूर्ति है, जिनका दृष्टांत आधुनिक युग में भी अनुसरण करने के लिए दिया जाता है।

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