कैसे दिवाली मनाते गैर- हिन्दू

विवेक शुक्ला

पिछले वर्षों की तरह इस बार भी दिवाली पर राष्ट्रपति भवन को रोशनी से सजाया जाएगा। जब यह जगमगाता है तो देखते ही बनता है। राष्ट्रपति भवन में रोशनी की यह परंपरा भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने शुरू की थी। उन्होंने ही सुनिश्चित किया था कि इसके परिसर में सभी प्रमुख भारतीय त्योहार मनाए जाएं। उनकी शुरू की गई इस समृद्ध परंपरा को उनके उतराधिकारियों ने भी जारी रखा।



भारत के विविध समाज में दिवाली धार्मिक सीमाओं से परे हो गई है। गैर-हिंदू जैसे सिख, जैन, बौद्ध, मुस्लिम और ईसाई भी उत्सव में शामिल होते हैं, जो देश की एकता में विविधता की भावना को दर्शाता है।

यहूदी धर्म, जो इजरायल से ज्यादा जुड़ा है, भारत में समृद्ध इतिहास रखता है। देश के विभिन्न हिस्सों में यहूदी समुदाय दिवाली मनाते हैं। छोटी दिवाली और दिवाली पर दिल्ली के हुमायूं रोड पर जुदा ह्याम सिनेगॉग के बाहर दीये जलाए जाते हैं। उत्तर भारत का एकमात्र सिनेगॉग होने के नाते, यह भारतीय यहूदी समुदाय की देश की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता में भागीदारी का प्रतीक है।

रब्बी इजेकील इसाकल मलेकर, जो अपने परिवार और दोस्तों के साथ सिनेगॉग के बाहर दीये जलाते हैं, कहते हैं, “भारत में रहते हुए दिवाली से कैसे दूर रह सकते हैं? यह असंभव है। दिवाली प्रेम, भाईचारे और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का त्योहार है। हम यहूदी हैं, लेकिन भारत के भी हिस्सा हैं।”

ऐसा ही एक उदाहरण राष्ट्रीय राजधानी के सिविल लाइंस में ब्रदरहुड हाउस मिलता है। अपनी ईसाई पृष्ठभूमि के बावजूद, ब्रदरहुड हाउस को दिवाली पर रोशन किया जाता है। ब्रदर सोलोमन जॉर्ज कहते हैं, “दिवाली, ईद और क्रिसमस जैसे त्योहार अब धार्मिक सीमाओं से परे हो गए हैं। इन्हें सभी मनाते हैं। दिवाली अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक है।” एसेंडेड क्राइस्ट का ब्रदरहुड 1877 में भारत में स्थापित हुआ, जिसके कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से मजबूत संबंध हैं। अब इसे दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी (डीबीएस) कहा जाता है। इसने दिल्ली में सेंट स्टीफंस कॉलेज, सेंट स्टीफंस अस्पताल और हरियाणा की दिल्ली-सोनीपत सीमा पर सेंट स्टीफंस कैम्ब्रिज स्कूल की स्थापना की है।

ब्रदर सोलोमन कहते हैं, “ दिवाली का अर्थ बहुत व्यापक है—यह अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक है। अंधकार जीवन के हर कोने में फैलता है, जबकि प्रकाश सीमित है। दिन से पहले और बाद में रात आती है, जो अंधकार की प्रधानता दिखाती है। ऐसे गहन संदेशों वाले इस त्योहार को हर कोई मनाना चाहता है। यह प्रकाश का पर्व हमें भारत के पवित्र मूल्यों की याद दिलाता है—जरूरतमंदों की मदद करना, अंधकार पर प्रकाश चुनना, ज्ञान और बुद्धि का पीछा करना तथा सद्भावना और करुणा का स्रोत बने रहना।”  राजधानी दिल्ली के बिशप हाउस पर दिवाली पर आलोक सज्जा की जाएगी।  यह ही है भारत की विशेषता। क्या है बिशप हाउस? ये देश के प्रोटेस्टेंट ईसाई समाज के प्रमुख बिशप का मुख्यालय है। यह नई दिल्ली के जयसिंह रोड पर।

सिख दिवाली को बंदी छोड़ दिवस से जोड़कर देखते हैं। उस दिन 1619 में मुगल सम्राट जहांगीर की कैद से छठे सिख गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई हुई थी। देशभर में सिख दिवाली पर अपने घर रोशन करते हैं। जैन दिवाली को अपने 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के 527 ईसा पूर्व निर्वाण प्राप्त करने के दिन के रूप में मनाते हैं। उनके लिए यह आत्ममंथन, उपवास और ज्ञान की शाश्वत रोशनी का प्रतीक दीये जलाने का समय है। राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में जैन मंदिरों को रोशनी से सजाया जाता है, और भक्त विशेष पूजा करते हैं। लड्डू और बर्फी जैसी मिठाइयां बांटी जाती हैं, और कई जैन अहिंसा और आत्म-अनुशासन पर प्रवचनों के लिए मंदिर जाते हैं। मुंबई जैसे शहरों में जैन समुदाय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं, जिनमें गैर-जैन भी शामिल होते हैं, जो अंतरधार्मिक सद्भाव बढ़ाते हैं।


मस्जिद में दीये जलाना

दीपोत्सव भारत की धरती का पर्व है। अगर ये बात न होती तो दिवाली पर निजामउद्धीन औलिया और मटका पीर की दरगाहों को रोशन करन की रिवायत ना होती। इधर दिवाली वाले दिन सब मिलकर दिये जलाते हैं और बनाते हैं रंगोली। यकीन मानिए कि दिवाली पर इन फकीरों की दरगाहों की रोशनी अंधेरे पर बहुत भारी पड़ती है। अपने पिता की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, प्रमुख इस्लामिक विद्वान और अंतरधार्मिक आंदोलन के समर्थक इमाम उमर इलियासी राजधानी की राजधानी के कस्तूरबा गांधी मार्ग पर गोल मस्जिद के बाहर दीये जलाते हैं। यह परंपरा उनके पिता मौलाना जामेइल इलियासी ने शुरू की थी, जो ऑल इंडिया इमाम कॉन्फ्रेंस के संस्थापक थे। 1960 के दशक से यह दिवाली उत्सव का अभिन्न हिस्सा है। मुंबई के व्यस्त इलाकों में मुस्लिम परिवार हिंदू पड़ोसियों से मिठाइयां आदान-प्रदान करते हैं और बच्चों के साथ फुलझड़ियां जलाते हैं। तमिलनाडु के सिवाकासी में कई मुस्लिम कारीगर देशभर में दिवाली के लिए इस्तेमाल होने वाले पटाखे बनाते हैं।

बेशक,भारत में गैर-हिंदुओं द्वारा दिवाली मनाना त्योहार के साझा सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक में विकास को रेखांकित करता है। यह सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा देता है।

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