अधेड़ उम्र की ख्वाहिशें

 अधेड़ उम्र की ख्वाहिशें

  बीत गई एक उम्र जो

 ख्वाहिशों को दिल में दबा,

 जिंदा रह पालती रही,

 रिश्तों को सींचती रही 

पौधों की तरह।

 वक्त नहीं था कभी कि,

 लिख-पढ़ सकें,

 हिसाब कर सकें कि,

 कितनी लंबी सूची बन गई....।

चारों और सब रिश्ते,

 रूठते-मनाते खिसियाते-हँसते,

 फुर्र-फुर्र चिड़िया से उड़ते गए,

 कभी-कभी पेड़ की उस शाख-सा,

महसूस किया खुद को,

जहाँ पक्षी से आकर बैठते,

 सभी चहचहाते और,

एक समय के बाद उड़ जाते !!

अब लगा कि,

 दब रही है,सूख रही है,

 वह शाख ख्वाहिशों और, 

 परिंदों के साथ लगातार,

 उस पेड़ की ओर निहारती,

अधेड़ उम्र की ख्वाहिशें,

अधेड उम्र में शाख,

वृक्ष को अपना अस्तित्व मानती,

किंतु का नहीं पा रही उससे,

कह नहीं पा रही कि, 

तुमने कभी देखा मुझे ! 

या कि नहीं,

 या कि बस मुझ पर लगे, 

पत्रों, फलों और बैठते,

परिंदों को ही देखा है !!

जिनका बोझ मैं सह रही,

किंतु अब मैं चाहती हूँ कि, 

 तुम मुझे संभालो,

 मेरे टूटने से पहले ..।

 सबको खुश दिखते हो पर,

 मेरा मान-सम्मान अब,

 सिर्फ तुम्हारे संभालने से है !!

 तुम सिर्फ हाथ थामें रहो,

तभी मैं और मेरी ख्वाहिशें, 

 हरी-भरी हो पाएँगी ।

 इस अधेड उम्र की ख्वाहिश है कि,

 तुम थामे रहो सम्मान संग,

 झुक जाओ अगर,

 मैं झुक-झुक कर अब,

 टूटने को हूँ ।, छूटने को हूँ ।

 मेरे छूटने के बाद,

न कहना कि,

 तुम थी मेरी शाख तो,

 मैं अच्छा था ।

 इंतजार मत करो इस पल का,

 मत नकारो, बस थाम लो मुझे,

 मेरी ख्वाहिशों को अधेड़ उम्र में..... शेष लगातार 


भावना अरोड़ा 'मिलन' 

मोटिवेशनल स्पीकर, अध्यापिका एवं लेखिका

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