कुकर की सीटी-सी जो बजती
और बजाती है ,
वही तो सचमुच घर की,
नारी शक्ति कहलाती है ।
फैले और बिखरे सामान पर,
जो बौखलाती है ,
वही तो सचमुच घर की,
नारी शक्ति कहलाती है ।
सबके उठने से पहले जो,
डाइनिंग को सजाती है ,
वही तो सचमुच घर की,
नारी शक्ति कहलाती है ।
दौड़ने से पहले सड़क पर जो,
दहलीज से ही गुस्साती है,
वही तो सचमुच घर की,
नारी शक्ति कहलाती है ।
तुम्हारे मन की चीजें हैं सजाई,
मैंने टेबल पर,
ढकी हुई है सब चीजें,
उनका लुत्फ उठाना,
भूल कर भी उनको भूलना न,
लिख लो यह दिल पर,
जो कुछ कह कर आई हूँ,
उसे तुम भूल न जाना,
पैक किया है जो टिफिन,
उसे याद से लेकर जाना,
मुझे पता है कि तुमने,
बाहर का उल्टा सीधा ही है खाना,
फिर भी यूँ ना समझना कि,
बनाई हैं सब बेकार की चीजें
यह बेकार की चीजें ही,
तुम्हें बीमारी से बचाती हैं ..
कुकर की सीटी-सी जो बजती
और बजाती है ,
वही तो सचमुच घर की,
नारी शक्ति कहलाती है ।
भावना अरोड़ा 'मिलन'
अध्यापिका, लेखिका,
मोटिवेशनल स्पीकर