सादगी ही असली समृद्धि

✍️ संदीप द्विवेदी

क्या कभी आपने सोचा है कि इतनी दौड़-भाग और मेहनत के बाद भी मन बेचैन क्यों रहता है? घर में ढेरों सामान होते हुए भी भीतर खालीपन क्यों महसूस होता है? शायद इसका जवाब जापान के ज़ेन भिक्षु शुनम्यो मासुनो की किताब “Zen: The Art of Simple Living” में छिपा है, जो हमें सिखाती है कि असली सुख और शांति किसी बड़ी उपलब्धि या महंगी चीज़ में नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की साधारण आदतों में मिल सकते हैं।

यह किताब सौ छोटे-छोटे अध्यायों में बंटी है और हर अध्याय जीवन को हल्का और संतुलित बनाने का एक सूत्र देता है। इसमें कोई भारी-भरकम दर्शन नहीं है, बल्कि सरल उदाहरण हैं जो जीने का नया नजरिया देते हैं। मासुनो कहते हैं कि हमारे घर और मन दोनों में बहुत कुछ ऐसा जमा है जिसकी ज़रूरत ही नहीं। पुराने सामान की तरह पुराने विचार भी हमें बोझिल बनाते हैं। जब हम अनावश्यक चीज़ों को छोड़ देते हैं तो भीतर और बाहर दोनों जगह हल्कापन महसूस होता है और यही हल्कापन असली आज़ादी देता है।

हममें से ज़्यादातर लोग अतीत की यादों और भविष्य की चिंताओं में उलझे रहते हैं, जबकि जीवन केवल इसी क्षण में है। किताब हमें याद दिलाती है कि जब आप चाय पी रहे हों तो सिर्फ़ उसकी गर्माहट और स्वाद को महसूस कीजिए, जब आप टहल रहे हों तो हवा और पेड़ों की आवाज़ को सुनिए। यही सजगता है और यही ध्यान की असली शुरुआत।

मासुनो प्रकृति को सबसे बड़ा शिक्षक मानते हैं। फूलों का खिलना, बारिश की बूंदें या चाँद की शांति—ये सब हमें धैर्य और संतोष सिखाते हैं। हमारी व्यस्तता हमें अक्सर इनसे दूर कर देती है, लेकिन अगर हम थोड़ी देर ठहरकर इन्हें महसूस करें तो भीतर की अशांति धीरे-धीरे पिघलने लगती है। किताब यह भी बताती है कि जीवन के छोटे-छोटे काम—जैसे सुबह बिस्तर ठीक करना, पौधों को पानी देना या घर साफ़ करना—सिर्फ़ जिम्मेदारियाँ नहीं हैं, बल्कि ये ध्यान की तरह हैं। इनमें अनुशासन, लय और शांति छिपी होती है, जो मन को स्थिर करती है।

जीवन में संतोष पाने के लिए हमें किसी बड़ी उपलब्धि का इंतज़ार नहीं करना चाहिए। मासुनो लिखते हैं कि सूरज की किरणें, एक प्याला चाय या किसी की मुस्कान—ये सब अपने आप में उपहार हैं। अगर हम हर दिन कृतज्ञता महसूस करें तो भीतर का खालीपन भर जाता है और हमें वास्तविक सुख का अनुभव होता है।

आज के उपभोक्तावादी दौर में जब हम दिखावे और प्रतियोगिता में उलझे रहते हैं, यह किताब हमें रुककर सोचने पर मजबूर करती है। क्या वाकई हमें इतना सब चाहिए? या फिर कम में जीकर हम और ज़्यादा पा सकते हैं? ज़ेन का संदेश साफ़ है—कम ही ज़्यादा है। यही कारण है कि यह किताब केवल दार्शनिकों या आध्यात्मिक साधकों के लिए नहीं, बल्कि हर उस इंसान के लिए है जो जीवन में शांति और संतुलन चाहता है।

“Zen: The Art of Simple Living” दरअसल हमें सिखाती है कि असली समृद्धि धन या वस्तुओं से नहीं, बल्कि सादगी, सजगता और कृतज्ञता से आती है। जब हम कम चीज़ों के साथ, पूरी सजगता से और आभार के भाव में जीते हैं, तभी जीवन वास्तव में समृद्ध होता है।

(लेखक द वुमनिया टाइम्स के मुख्य संपादक हैं)

 

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने