शिव नहीं कहते

शिव नहीं कहते कि,

मैं ॐ, मैं सर्वस्व, मैं त्रिलोचन,

मैं आदिशक्ति, मैं जगत विश्राम,

हैं मुझमें ही चारों धाम |

शिव नहीं कहते कि,

मुझ शमशानवासी को,

मुझ भस्मधारी को,

जा मंदिरों में,

दही,घी,शहद… का लेप करो,

और शिवलिंग को कराओ दुग्धपान !

शिव नहीं कहते कि,

नकार कर एक लाचार माँ को,

मूकव्यथा जिसके मुखमंडल पर,

चढ़ते हुए मंदिर की सीढ़ियाँ,

जिसे तुम देख न सको,

गोद में जिसकी क्षुधाग्रस्त बाल,

अश्रुपूरित मृदुल नैनों से,

दुग्ध हेतु कर रहा,करुण क्रंदन गान |

शिव नहीं कहते कि,

भांग,धतूरा,बेलपत्र आदि से ,

तुम करो मेरा शृंगार,

ये सब सामान मेरी मूरत से उठाकर,

बहा दिया जाएगा,

कुछ जो खुला चढ़ाया जाएगा,

वो नालियों में जाएगा,

जो चीज़ें बंद होंगी उन्हें,

चढ़ावा और दान समझ,

किसी चोटीधारी का भरा घर,

और भर जाएगा,

क्या रहेगी मेरी भक्ति, कहाँ मेरा सम्मान |

शिव नहीं कहते कि,

जिनकी चादर है आसमान औ,

धरा के चंद किनारे हैं बिछौना,

भूख से विचलतों का सड़कों पे,

करुणामयी हो हर आते-जाते में,

मुझे खोजना,

तू बता ?

भला कौन रखेगा इनका ध्यान ?

धर्म तेरा कहता यही कि

कर्मपथ में ही ॐ है,

यही विष्णु औ शिवपुराण,

यही देती गीता है ज्ञान |











 भावना 'मिलनअरोरा

अध्यापिकालेखिका एवं विचारक

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