गिरकर उठना कोई जिम्मी अमरनाथ से सीखे

विवेक शुक्ला



मोहिन्दर अमरनाथ ने जब वेस्ट इंडीज के खिलाफ जनवरी, 1988 में अपना आखिरी टेस्ट मैच खेला था तब तक विराट कोहली, जसप्रीत बुमराह और ऋषभ पंत का जन्म नहीं हुआ था। इसके बावजूद मोहिन्दर अमरनाथ के चाहने वाले अब भी कम नहीं हैं। वह सत्तर  वसंत देख चुके हैं। मोहिन्दर अमरनाथ को उनके चाहने वाले जिम्मी पाजी भी कहते हैं। वे एक अरसे के बाद फिर अपने शहर दिल्ली लौटे।मौका था उनकी आत्मकथा का बीते गुरुवार को विमाचन का। उन्होंने 1993 में दिल्ली सेमुंबई शिफ्ट कर लिया था।  

मोहिन्दर अमरनाथ जब 19 साल से कम के थे तब उन्हें आस्ट्रेलिया के खिलाफ चैन्नई टेस्ट के लिए चुना गयाथा। अपने पहले ही टेस्ट मैच में आस्ट्रेलिया के दो बेहतरीन बल्लेबाजों किथस्टेकपॉल और इटयान चैपल को आउट करने के बाद भी मोहिन्दर अमरनाथ को अपने दूसरेटेस्ट को खेलने के लिए सात साल का लंबा इंतजार करना प़ड़ा था। उनकी क्रिकेट के मैदान में बेहतरीन कामयाबियों के साथ-साथ क्रिकेट की बारीकियों की समझ भी असाधारणहै। वे जब क्रिकेट पर अपनी बात रखते हैं, तो उसका मतलब होता है। वे सच बोलने में यकीन रखतेहैं। बेशक से किसी को बुरा लगे। उनके चाहने वालों में भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर भी हैं। मोहिन्दर अमरनाथ की आत्मकथा के विमोचन के मौके पर उन्होंने कहा किवे स्कूल में पढ़ रहे थे जब मोहिन्दर अमरनाथ ने अपना पहला टेस्ट खेला था। वेउन्हें तब से फोलो कर रहे हैं। मोहिन्दर अमरनाथ की क्रिकेट कामतलब है दृढ़ता, साहस और धैर्य। सुनील गावस्कर कहते हैं, मोहिन्दर अमरनाथ अपने युग के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज थे। लेकिन अजीब तरह से, उन्हें भारतीय टीम से बार-बार बाहर कर दिया गया, और बाद में वे अपनी वापसी के लिए प्रसिद्ध हुए, जिससे उन्हें "कमबैक किंग" का उपनाम मिला। वे एक ऐसे खिलाड़ी था जिसने  झुकना नहीं सीखा था।  

मोहिन्दर अमरनाथ कहते हैं," मेरे क्रिकेट करियर में कई उतार-चढ़ाव आए जिन्हें समझाना मुश्किल है लेकिन जिसने मुझे समझदार और मजबूत बनाया।मैंने कठिन परिस्थितियों में, सभी बाधाओं के खिलाफ दबाव को बेहतर तरीके से संभालना सीखा। क्रिकेट ने मेरेसपनों को पूरा किया। भारत के क्रिकेट प्रेमियों को मुझ पर बहुत विश्वास था और इसनेमुझे गरिमा और गर्व के साथ हर कठिन परिस्थिति से लड़ते हुए आगे बढ़ाया। यह पुस्तक मेरे महान पिता लाला अमरनाथ और प्यारी माता को श्रद्धांजलि है, जिन्होंने मुझे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सही दिशा में मार्गदर्शन किया। मैं हमेशा आज के लिए जीया हूँ।” “मैं लगातार पेशेवर रूप से काम करने में विश्वास करता हूँ, असफल होने पर बहाने नहीं ढूँढता, और गलतियों से सीखता हूँ। साथ ही, हार में भी सामान्य रहता हूं।"मोहिन्दर अमरनाथ ने दिल्ली के रेलवे स्टेडियम और कोटला में खूब क्रिकेट खेली। 

अब भी बहुत से लोगों को याद होगा जब वे किसी मैच से पहले तिपहिया स्कूटर पर कोटला पहुंचते थे अपने बड़े भाई सुरेन्द्र अमरनाथ के साथ।मैच खत्म होने के बाद वापस भी दोनों भाई तिपहिया स्कूटर पर ही घर जाते। उन्हें तिपहिया पर बैठने से पहले उनके कुछ फैन्स सलाह भी दिया करते थे कि उन्हें किस तरहसे बल्लेबाजी या गेंदबाजी करनी चाहिए। दोनों भाई ध्यान से अपने चाहने वालों कीबातें सुनते और हाथ मिलाकर निकल लेते।  बहरहाल,तेज गेंदबाजोंका बेखौफ होकर मुकाबला करना तो कोई मोहिन्दर अमरनाथ से सीखे। उन्हें दुनिया का कोईभी तेज गेंदबाज डरा नहीं सका था। वे मूल रूप से बैटिंग आल राउंडर थे। ठोसबल्लेबाजी के साथ उनकी मध्यम तेज गति के गेंदों में भरपूर विविधता रहती थी। उसी का कमाल था कि भारत को 1983 के एकदिवसीय विश्व कप को जीतने में बहुत कठिनाई नहीं हुई।वे विश्व कप के सेमीफाइनल और फाइनल में मैन ऑफ दि मैच रहे थे। सुरेन्द्र अमरनाथ भी कमाल के खब्बू बल्लेबाज थे। अपने पिता लाल अमरनाथ की तरह सुरेन्द्र अमरनाथ ने भी पहले ही टेस्ट मैच में शतक ठोका था। राजेंद्र अमरनाथ कहते हैं, "जब मैंने अपने पिता लाला अमरनाथ की जीवनी, द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड लिखी, तो मुझे लगा कि मैंने एक बेटे के रूप में अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है।मुझे थोड़ा भी अहसास नहीं था कि मुझे अभी एक किताब पर और काम करना है। मेरा जिम्मी पाजी के साथ एक अटूट बंधन है और मैं उन्हें अच्छी तरह से जानता हूँ। हालाँकि, जब मैंने लिखना शुरू किया, तो मुझे एहसास हुआ कि मैं उनके बारे में वास्तव में कितना कम जानता था।” 

राजेन्द्र अमरनाथ लाला अमरनाथ के सबसे छोटे पुत्र हैं। मोहिन्दर अमरनाथ के क्रिकेटकरियर के लिए कहा जा सकता है कि यह  राख से उठने वाले फीनिक्स की तरह है। मीडिया ने उन्हें सही ही 'कमबैक किंग' कहा। मशहूर क्रिकेट कमेंटेटर और लेखक डॉ. मोहिन्दर अमरनाथ की क्रिकेट करियर के करीब जानने वाले कहते हैं कि वे बेहतरीन ऑल-राउंडर थे जो गेंद और बल्ले दोनों से अच्छा प्रदर्शन कर सकते थे। उनकी मध्यम तेज गेंदबाजी और निचले क्रम में उपयोगी बल्लेबाजी ने उन्हें टीम के लिए अमूल्य बना दिया था। वे मैच के नतीजे बदलने की क्षमता रखते थे। उनकी बल्लेबाजी या गेंदबाजी, दोनों ही से उन्होंने कई बार मुश्किल परिस्थितियों में भारत को जीत दिलाईथी।मोहिन्दर अमरनाथ   कभी हार नहीं मानते थे और हमेशा जीत के लिए संघर्ष करते थे। उनका आत्मविश्वास और खेल के प्रति जुनून उनके व्यक्तित्व का हिस्सा था। उनसे आने वाली पीढ़ियां प्रेरणा लेती रहेंगी। 

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने