विवेक शुक्ला
भारत की संसद से कुछ ही दूरी पर स्थित 22 पृथ्वीराज रोड का भारत के संविधान और संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर से करीब का नाता रहा। संविधान सभा ने 29 अगस्त 1947 को जब बाबा साहेब की अध्यक्षता में भारत के संविधान को तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी, वे तब 22 पृथ्वीराज रोड पर रह रहे थे। इससे पहले देश को आजादी तो मिली थी पर देश बंटा भी था। दिल्ली के कई भागों में दंगे भड़के हुए थे। उस बेहद कठिन काल में संविधान सभा की बैठकें पुराने संसद भवन में होती थीं। संविधान को तैयार करने के लिए बाबा साहेब अपने पृथ्वीराज रोड के स्टडी रूम में ही दिन-रात शोध और अध्ययन करते थे।
बाबा साहेब 20 अप्रैल,1942 को पहली बार दिल्ली आए थे। उन्हें वायसराय की कार्यकारी परिषद में वर्क्स, हाउसिंग और सप्लाई विभाग का पदभार संभालने के लिए दिल्ली बुलाया गया था। उस समय मौजूदा मावलंकर हाल के पीछे छोटी-छोटी अनेक कुटिया ( बैरक्स) बनी हुईं थीं। बाबा साहेब दिल्ली में पहली रात 35 नंबर की कुटिया में ही रहे। उस रात मच्छरों की वजह से उन्हें नींद नहीं आई। उसके बाद उन्हें जनपथ पर स्थित वेस्टर्न कोर्ट के कमरा नं. 2 में शिफ्ट कर दिया गया। कुछ दिनों के बाद बाबा साहेब ने लोदी एस्टेट में कुछ सरकारी बंगले देखे। उन्हें लोदी एस्टेट पसंद नहीं आया।
उसके बाद उन्हें 22 पृथ्वीराज रोड का बंगला दिखाया गया। यह उन्हें सही लगा। बाबा साहेब के जीवन पर शोध कर रहे सुमनजी संघ मित्र कहते हैं कि उस समय पृथ्वीराज रोड का बंगला खंडहर की सूरत में था। एकदम उजाड़। अंदर मकड़ी के बड़े-बड़े जाले बने थे, दरवाजों की लकड़िया टूटी पड़ी थी, प्लास्टर उखड़ा पड़ा था। उसे भूत-बंगला कहते थे। लेकिन वैज्ञानिक मानसिकता रखने वाले बाबा साहेब ने इसमें रहना पसंद किया। उस बंगले में उनकी हजारों किताबें भी समा गईं।
संविधान सभा की बैठकों में भाग लेने के लिए तैयारी बाबा साहेब अपने घर में खुद ही किया करते थे। उनके साथ उस समय उनकी पत्नी डॉ. सविता के अलावा उनके सहयोगी नानक चंद रत्तू और खाना पकाने वाले साथी सुदामा भी रहते थे। दिन के वक्त बाबा साहेब की किताबों और लाइब्रेयरी की देखभाल करने वाले देवी दयाल भी होते। देवी दयाल किताबों को झाड़ने-पोंछने से लेकर अखबारों की कतरनों को तारीख के क्रम में रजिस्टर में चिपकाने का काम उनकी मृत्यु तक बखूबी करते रहे।
हिन्दू कोड बिल पर नेहरू सरकार की नीयत से क्षुब्ध होकर बाबा साहेब ने कैबिनेट मंत्री का पद छोड़ दिया। उसके बाद वे 26 अलीपुर रोड ( अब शाम नाथ मार्ग) पर शिफ्ट कर गए थे। इधर बाबा साहेब ने अपनी जिंदगी के अंतिम पांच बरस गुजारे थे। इधर ही उनका 5 और 6 दिसंबर 1956 की रात को किसी समय निधन हुआ था।
आप जैसे ही 26 शामनाथ मार्ग के अंदर पहुंचते हैं, तो आपको कहीं ना कहीं लगता है कि बाबा साहेब यहां पर ही कहीं होंगे। वे कभी भी कहीं से आपके सामने खड़े हो जाएंगे। बेशक, जिस जगह पर बाबा साहेब जैसी शिखर हस्ती ने अपने जीवन के कुछ बरस बिताए वह जगह अपने आप में खास तो है। यहां नई इमारत बनने से पहले शामनाथ मार्ग के इस बंगले में बहुत से कमरे थे। बंगले के आगे एक सुंदर सा बगीचा भी था। कहते हैं कि उनके घर के दरवाजे सबके लिए हमेशा खुले रहते थे। कोई भी उनसे कभी मिलने के लिए आ सकता था। वे सबको पर्याप्त वक्त देते थे। अपने पास मिलने के लिए आने वालों के साथ तमाम विषयों पर बात करते थे।
कहां लिखी ‘बुद्धा एंड हिज धम्मा’
बाबा साहेब ने इधर रहते हुए ‘बुद्धा एंड हिज धम्मा’ नाम से अपनी कालजयी पुस्तक लिखी थी। इस में उन्होंने भगवान बुद्ध के विचारों की व्याख्या की है।बाबा साहेब द्वारा लिखी यह अंतिम पुस्तक है। संपूर्ण विश्व भर और मुख्यतः बौद्ध जगत में यह ग्रंथ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह ग्रंथ मूलतः अंग्रेज़ी में 'द बुद्धा ऐण्ड हिज़ धम्मा' नाम से लिखा गया। इसका हिन्दी, गुजराती, तेलुगु, तमिल, मराठी, मलयालम, कन्नड़, जापानी सहित और कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है। प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान और भिक्खू डॉ. भदन्त आनंद कौसल्यायन जी ने इस ग्रंथ का हिंदी अनुवाद किया है।
इस बीच, क्या आप जानते हैं कि उनकी पहली मूरत राजधानी के रानी झांसी रोड पर स्थित अंबेडकर भवन में 14 अप्रैल 1957 को स्थापित की गई थी? बाबा साहेब ने आंबेडकर भवन की 16 अप्रैल 1950 को नींव रखी थी। उनकी 6 दिसंबर 1956 को मृत्यु के बाद उनका जो पहला जन्म दिन आया, उस दिन उनकी यहां पर प्रतिमा लगाई गई थी। उसके बाद तो देश भर में बाबा साहेब की प्रतिमाएं लगती रहीं।
संसद भवन में बाबा साहेब
बाबा साहेब की संसद भवन परिसर में प्रतिमा 2 अप्रैल 1967 को स्थापित हुई थी। उसका अनावरण किया था भारत के तब के राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने। इस प्रतिमा को तैयार किया था महान मूर्तिशिल्पी श्री बी.वी. वाघ ने। संसद भवन में लगी बाबा साहेब की शानदार प्रतिमा में वाघ ने उन्हें जनता का आहवान करते हुए दिखाया है। उनके एक हाथ में भारत के संविधान की प्रति भी है।
बाबा साहेब का संसद भवन के सेंट्ल हॉल में लगा चित्र सुश्री जेबा अमरही ने बनाया था। इसका अनावरण देश के प्रधानमंत्री के रूप में श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 12 अप्रैल 1990 को किया था।
इस बीच, बाबा साहेब कभी 15 जनपथ में नहीं रहे। वे या तो 22 पृथ्वीराज रोड या फिर 26 अलीपुर रोड पर रहे। तो फिर उनके नाम पर डॉ. आंबेडकर फाउंडेशन जनपथ में क्यों बनाया गया? दरअसल इसकी वजह यह थी कि 15 जनपथ पर बाबा साहेब के परम सहयोगी भाऊराव कृष्णजी गायकवाड दो बार रिपब्लिकन पार्टी के संसद सदस्य के रूप में रहे। उन्होंने भी बाबा साहेब के साथ 14 अक्तूबर 1956 को बुद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था। फिर 15 जनपथ का बंगला रिपब्लिकन पार्टी का दफ्तर भी रहा। इसलिए ही सरकार ने इसे आंबेडकर फाउंडेशन के रूप में विकसित किया। अब इधर बाबा साहेब की एक भव्य प्रतिमा भी लगी हुई है, जिसे चोटी के मूर्तिशिल्पी राम सुतार ने बनाया था।